आगे बिछी पड़ी रहीं उस के बदन की नेमतें
उस ने बहुत कहा मगर मैं ने उसे चखा नहीं
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सुल्ह के बअ'द मोहब्बत नहीं कर सकता मैं
बस एक जिस्म एक ही क़द में पड़ा रहूँ
उस ख़ुदा की तलाश है 'अंजुम'
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा
जस्त भरता हुआ फ़र्दा के दहाने की तरफ़
खुली हुई है जो कोई आसान राह मुझ पर
चख रहा था मैं इक बदन का नमक
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी
दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे