आँख खुल कर अभी मानूस नहीं हो पाती
और दीवार से तस्वीर बदल जाती है
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माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
इतना तरसाया गया मुझ को मोहब्बत से कि अब
मुझे पता है कि बर्बाद हो चुका हूँ मैं
उम्र की सारी थकन लाद के घर जाता हूँ
चराग़ हाथ में हो तो हवा मुसीबत है
कहो हवा से कि इतनी चराग़-पा न फिरे
किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
पानी की आवाज़
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा