कहो हवा से कि इतनी चराग़-पा न फिरे
मैं ख़ुद ही अपने दिए को बुझाने वाला हूँ
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माज़रत रौंदे हुए फूलों से कर लूँ तो चलूँ
गिर्या
दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को
कैसी होती हैं उदासी की जड़ें
हम बे-वतन ख़्वाबों के जोलाहे हैं
ख़ुद अपने हाथ से क्या क्या हुआ नहीं मिरे साथ
पुर्सा
मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ
मैं सब का सब मोहब्बत के लिए हूँ
कल तो तिरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की
जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर