कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है
सो मिरे दोस्त इजाज़त मुझे रुख़्सत किया जाए
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(826) Peoples Rate This
एक महबूस नज़्म
आगे बिछी पड़ी रहीं उस के बदन की नेमतें
मैं दिल-ए-गिरफ़्ता तुझे गुनगुनाता रहता हूँ
चख रहा था मैं इक बदन का नमक
जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में
किसी तरह से मैं टल जाऊँ अपनी मर्ज़ी से
मुझे पता है कि बर्बाद हो चुका हूँ मैं
काश
हिज्र में भी हम एक दूसरे के
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया
उदासी खींच लाई है यहाँ तक