किसी तरह से मैं टल जाऊँ अपनी मर्ज़ी से
सो बार बार इरादा बदल के देखता हूँ
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पुर्सा
बस एक जिस्म एक ही क़द में पड़ा रहूँ
सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा
पानी की आवाज़
ये मोहब्बत का जो अम्बार पड़ा है मुझ में
सोला दिसम्बर
सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया
आधी मौत का जन्म
एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
किस ज़माने में मुझ को भेज दिया
कहने सुनने के लिए और बचा ही क्या है