किस ज़माने में मुझ को भेज दिया
मुझ से तो राय भी न चाही मिरी
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(776) Peoples Rate This
शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
चख रहा था मैं इक बदन का नमक
सुल्ह के बअ'द मोहब्बत नहीं कर सकता मैं
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया
फ़लक-नज़ाद सही सर-निगूँ ज़मीं पे था मैं
जाने तोड़े थे किस ने किस के लिए
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
मैं आज ख़ुद से मुलाक़ात करने वाला हूँ
उस ख़ुदा की तलाश है 'अंजुम'
तुम अकेले में मिले ही नहीं वर्ना तुम को
अच्छे मौसम में तग-ओ-ताज़ भी कर लेता हूँ
हम बे-वतन ख़्वाबों के जोलाहे हैं