जाने तोड़े थे किस ने किस के लिए
फूल मेरे गले पड़े हुए थे
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वो इक दिन जाने किस को याद कर के
किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए
ऐसी क्या बीत गई मुझ पे कि जिस के बाइस
किसी तरह से नज़र मुतमइन नहीं होती
आधी मौत का जन्म
ख़ुद तक मिरी रसाई नहीं हो रही अभी
एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
आती जाती हुई तन्हाई को पहचानता हूँ
कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
सभी दरवाज़े खुले हैं मिरी तन्हाई के
कहो हवा से कि इतनी चराग़-पा न फिरे