जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
मुझ पे बीती है ऐसी तन्हाई
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मैं चीख़ता रहा कुछ और भी है मेरा इलाज
खुली हुई है जो कोई आसान राह मुझ पर
वो इक दिन जाने किस को याद कर के
कहो हवा से कि इतनी चराग़-पा न फिरे
सोला दिसम्बर
हवा का तख़्त बिछाता हूँ रक़्स करता हूँ
एक साकित रात का अज़ाब
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ
शब-ए-जमाल सलामत रहें तिरे परी-ज़ाद
पुराना ज़हर नए नाम से मिला है मुझे
अध-बुने ख़्वाबों का अम्बार पड़ा है दिल में
मुझ से ख़ाली है मेरा आईना