चख रहा था मैं इक बदन का नमक
सारे बर्तन खुले पड़े हुए थे
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पत्थर में कौन जोंक लगाएगा मेरे दोस्त
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी
हिसाब-ए-जाँ!!
मैं सब का सब मोहब्बत के लिए हूँ
रात तिरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की
इतना तरसाया गया मुझ को मोहब्बत से कि अब
हिज्र में भी हम एक दूसरे के
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा
पुराना ज़हर नए नाम से मिला है मुझे
काश
उठाए फिरता रहा मैं बहुत मोहब्बत को
आधी मौत का जन्म