कैसी होती हैं उदासी की जड़ें
आ दिखाऊँ तुझे दिल के रेशे
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वो इक दिन जाने किस को याद कर के
मैं एक एक तमन्ना से पूछ बैठा हूँ
हवा का तख़्त बिछाता हूँ रक़्स करता हूँ
तेरे अंदर की उदासी के मुशाबह हूँ मैं
मैं तुम्हारे लिए ले के आया हूँ
सरगोशी
ये भी आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बहुत है मुझ को
कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर
मैं जब वजूद से होते हुए गुज़रता हूँ
टूटे हुए प्याले
ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ