संभावना Poetry (page 5)

बैज़ा-ए-नूर

फ़रहत एहसास

सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं

फ़रहत एहसास

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

इश्क़ में कितने बुलंद इम्कान हो जाते हैं हम

फ़रहत एहसास

जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और

एहसान जाफ़री

ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर

एहसान दानिश

न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को

एहसान दानिश

समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

हर इक इम्कान तक पस्पाई है अपनी

चंद्र प्रकाश शाद

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

तर्सील

बलराज कोमल

दीदा-ए-तर

बलराज कोमल

हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन

बकुल देव

हमें देखा न कर उड़ती नज़र से

बकुल देव

बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द

बदनाम नज़र

हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख

अज़लान शाह

हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख

अज़लान शाह

मुझ को हर सम्त ले के जाता है

अज़हर नवाज़

ज़ीस्त उनवान तेरे होने का

अज़हर नवाज़

नहीं है पर कोई इम्कान हो भी सकता है

अज़हर नक़वी

हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी

अज़हर नैयर

जब भी चाहूँ तेरा चेहरा सोच सकूँ

अज़हर अदीब

कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख

अज़हर अदीब

ऐसे पामाल कि पहचान में आते ही नहीं

अज़हर अब्बास

यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ

अतहर नासिक

यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ

अतहर नासिक

क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ

असलम महमूद

नेकी बदी की अब कोई मीज़ान ही नहीं

अशोक साहनी

खुल कर तो वो मुझ से कभी मिलता ही नहीं है

अशफ़ाक़ हुसैन

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