हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख
अपनी मुश्किल किसी आसान से बाँधे हुए रख
Rahat Indori
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कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती
तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं
किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने
माँगना ख़्वाहिश-ए-दीदार से आगे क्या है
दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं