तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
झगड़े के लिए वक़्त निकालें कोई हम भी
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किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
बे-यक़ीनी का तअल्लुक़ भी यक़ीं से निकला
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
न हाथ सूख के झड़ते हैं जिस्म से अपने
दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख