ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
आदमी इश्क़ में दुनिया से बुरा होता है
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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बे-यक़ीनी का तअल्लुक़ भी यक़ीं से निकला
एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन
तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को
हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख
किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ
चंद क़दमों से ज़ियादा नहीं चलने पाते
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं