किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ
मुझ को मालूम है मंजधार से आगे क्या है
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दूसरा रुख़ नहीं जिस का उसी तस्वीर का है
एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने
किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख