किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
ख़ुदा को भूल गए नेकियाँ कमाते हुए
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एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
माँगना ख़्वाहिश-ए-दीदार से आगे क्या है
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
चंद क़दमों से ज़ियादा नहीं चलने पाते
दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
बे-यक़ीनी का तअल्लुक़ भी यक़ीं से निकला
तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को