एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
कोई चश्मा नहीं ज़रख़ेज़ ज़मीं से निकला
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
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हार को जीत के इम्कान से बाँधे हुए रख
तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन
किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
चंद क़दमों से ज़ियादा नहीं चलने पाते
हारे हुए लोगों की कहानी की तरह हैं
किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
क़ुबूल होती हुई बद-दुआ से डरते हैं
चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
मुझ को पहचान तू ऐ वक़्त मैं वो हूँ जो फ़क़त