कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
मगर ये दुनिया कि हर बार अपनी होती है
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तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन
किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
न हाथ सूख के झड़ते हैं जिस्म से अपने
दूसरा रुख़ नहीं जिस का उसी तस्वीर का है
मुझ को पहचान तू ऐ वक़्त मैं वो हूँ जो फ़क़त
तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
चुपके से गुज़रते हैं ख़बर भी नहीं होती
तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को
बे-यक़ीनी का तअल्लुक़ भी यक़ीं से निकला
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था