चंद क़दमों से ज़ियादा नहीं चलने पाते
जिस को देखो वही क़ैदी किसी ज़ंजीर का है
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किसी के नाम पे नन्हे दिए जलाते हुए
कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
मुझ को पहचान तू ऐ वक़्त मैं वो हूँ जो फ़क़त
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
किस लिए इस से निकलने की दुआएँ माँगूँ
क़ुबूल होती हुई बद-दुआ से डरते हैं
बे-यक़ीनी का तअल्लुक़ भी यक़ीं से निकला
एड़ियाँ मार के ज़ख़्मी भी हुए लोग मगर
समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने
ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं
पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती