प्रेम Poetry (page 105)

तुम्हारी बज़्म में जिस बात का भी चर्चा था

अबरार आज़मी

ये दाग़-ए-इश्क़ जो मिटता भी है चमकता भी है

अबरार अहमद

ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू

अबरार अहमद

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

हमें ख़बर नहीं कुछ कौन है कहाँ कोई है

अबरार अहमद

यज़ीद-ए-वक़्त ने अब के लगाई है क़दग़न

आबिद वदूद

सब अपने अपने तरीक़े से भीक माँगते हैं

आबिद वदूद

न घर सुकून-कदा है न कारख़ाना-ए-इश्क़

आबिद वदूद

मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं

आबिद मलिक

अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है

अभिषेक शुक्ला

जहान-ए-फ़िक्र पे चमकेगा जब सितारा मिरा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

सुनाया यार नीं आ कर दो तारा

अब्दुल वहाब यकरू

लोग हर-चंद पंद करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

इश्क़ है इश्क़-ए-पाक-बाज़ी का

अब्दुल वहाब यकरू

काश समझते अहल-ए-ज़माना

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

अदब में मुद्दई-ए-फ़न तो बे-शुमार मिले

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

अँधेरी रात को मैं रोज़-ए-इश्क़ समझा था

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

पूछी न ख़बर कभी हमारी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

कुछ तौर नहीं बचने का ज़िन्हार हमारा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़म याँ तो बिका हुआ खड़ा है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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