प्रेम Poetry (page 104)

साज़-ए-सुख़न बहाना है

अदा जाफ़री

बे-नियाज़-ए-दहर कर देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

बे-नियाज़-ए-दहर कर देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

बे-नियाज़ दहर कर देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

ये बंदगी का सदा अब समाँ रहे न रहे

अबु मोहम्मद वासिल

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहूँचा

अबु मोहम्मद वासिल

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे

अबु मोहम्मद सहर

फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब

अबु मोहम्मद सहर

खो के देखा था पा के देख लिया

अबु मोहम्मद सहर

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

काम हर ज़ख़्म ने मरहम का किया हो जैसे

अबु मोहम्मद सहर

चाँद का रक़्स सितारों का फ़ुसूँ माँगती है

अबु मोहम्मद सहर

अब तक इलाज-ए-रंजिश-ए-बे-जा न कर सके

अबु मोहम्मद सहर

फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र

आबरू शाह मुबारक

ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा

आबरू शाह मुबारक

याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या

आबरू शाह मुबारक

सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं

आबरू शाह मुबारक

पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता

आबरू शाह मुबारक

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

आबरू शाह मुबारक

मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना

आबरू शाह मुबारक

हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का

आबरू शाह मुबारक

अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है

आबरू शाह मुबारक

आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ

आबरू शाह मुबारक

कुछ है ख़बर फ़रिश्तों के जलते हैं पर कहाँ

अबरार शाहजहाँपुरी

इलाही क्या कभी पूरे ये अरमाँ हो भी सकते हैं

अबरार शाहजहाँपुरी

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