जान Poetry (page 29)

दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

या वस्ल में रखिए मुझे या अपनी हवस में

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

उस बंदा की चाह देखिएगा

इंशा अल्लाह ख़ान

सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठों

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

लब पे आई हुई ये जान फिरे

इंशा अल्लाह ख़ान

गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले

इंशा अल्लाह ख़ान

देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना

इंशा अल्लाह ख़ान

अश्क मिज़्गान-ए-तर की पूँजी है

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

आने अटक अटक के लगी साँस रात से

इंशा अल्लाह ख़ान

शाख़-ए-अदम

इंजिला हमेश

अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब

इन्दिरा वर्मा

वो एक शख़्स कि बाइस मिरे ज़वाल का था

इनाम-उल-हक़ जावेद

समझने वाला मिरा मर्तबा समझता है

इनआम आज़मी

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा

इमरान शमशाद

तुम्हारा हुस्न है यकता चलो मैं मान लेता हूँ

इमरान साग़र

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

यूँही उलझी रहने दो क्यूँ आफ़त सर पर लाते हो

इम्दाद इमाम असर

क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा

इमदाद अली बहर

वफ़ा में बराबर जिसे तोल लेंगे

इमदाद अली बहर

सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत

इमदाद अली बहर

सब हसीनों में वो प्यारा ख़ूब है

इमदाद अली बहर

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