जान Poetry (page 27)

हम ने तो इस इश्क़ में यारो खींचे हैं आज़ार बहुत

रसा चुग़ताई

दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया

रसा चुग़ताई

तुझ को आती है दिलासे की नहीं बात कोई

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

कहाँ किसी की हिमायत में मारा जाऊँगा

राणा सईद दोशी

तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें

राना आमिर लियाक़त

अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा

राना आमिर लियाक़त

वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

जब उन के पा-ए-नाज़ की ठोकर में आएगा

रम्ज़ आफ़ाक़ी

इश्क़ की ऐसी शान तो होगी

रम्ज़ आफ़ाक़ी

घर है तिरा तू शौक़ से आने के लिए आ

रम्ज़ आफ़ाक़ी

मुस्कराउँगा गुनगुनाउँगा

रमेश कँवल

किस ने कहा था शहर में आ कर आँख लड़ाओ दीवारों से

राम प्रकाश राही

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

मुस्तक़िल दीद की ये शक्ल नज़र आई है

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया

राम कृष्ण मुज़्तर

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

राम कृष्ण मुज़्तर

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ओस से प्यास कहाँ बुझती है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

फ़ज़ा कि फिर आसमान भर थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

देखता था मैं पलट कर हर आन

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे

राजेन्द्र कृष्ण

ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है

राजेश रेड्डी

ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है

राजेश रेड्डी

न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़

राजेश रेड्डी

जाने कितनी उड़ान बाक़ी है

राजेश रेड्डी

महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले

राजेन्द्र नाथ रहबर

दिल ये करता है आज मेरा भी

राजेन्द्र कलकल

अब है दुआ ये अपनी हर शाम हर सहर को

रजब अली बेग सुरूर

इस तरह आह कल हम उस अंजुमन से निकले

रजब अली बेग सुरूर

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