अब है दुआ ये अपनी हर शाम हर सहर को
या वो बदन से लिपटे या जान तन से निकले
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(515) Peoples Rate This
नादान कह रहे हैं जिसे आफ़्ताब-ए-हश्र
लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शो'ला अयाँ न हो
क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में
करूँ शिकवा न क्यूँ चर्ख़-ए-कुहन से
फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े
मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं
तर्क जिस दिन से किया हम ने शकेबाई का
क़ुरआँ किताब है रुख़-ए-जानाँ के सामने
इस तरह आह कल हम उस अंजुमन से निकले
किस तरह पर ऐसे बद-ख़ू से सफ़ाई कीजिए
नासेहा फ़ाएदा क्या है तुझे बहकाने से