जान Poetry (page 31)

दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर

इदरीस बाबर

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

देखा तो कोई और था सोचा तो कोई और

इब्राहीम अश्क

आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान

इब्न-ए-सफ़ी

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

क्या धोका देने आओगी

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

रौशनी में खोई गई रौशनी

हुसैन आबिद

इन लफ़्ज़ों में ख़ुद को ढूँडूँगी मैं भी

हुमैरा रहमान

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो

होश तिर्मिज़ी

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

रास आई न मुझे अंजुमन-आराई भी

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

अपना बातिन ख़ूब है ज़ाहिर से भी ऐ जान-ए-जाँ

हातिम अली मेहर

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा

हातिम अली मेहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

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