जान Poetry (page 57)

उर्दू

अली सरदार जाफ़री

बम्बई

अली सरदार जाफ़री

चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे

अली सरदार जाफ़री

शहर-ए-दिल कुंज-ए-बयाबान नहीं था पहले

अली मुज़म्मिल

सर्कस

अली इमरान

शाम घर जाएगी मैं किधर जाऊँगा

अली इमरान

एक खिड़की गली की खुली रात भर

अली अहमद जलीली

ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैं ने

अलीना इतरत

चराग़ शाम से आख़िर जलाएँ किस के लिए

अलीम उस्मानी

वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए

आलमताब तिश्ना

उर्दू

आलम मुज़फ्फ़र नगरी

कभी कभी कितना नुक़सान उठाना पड़ता है

आलम ख़ुर्शीद

तू साथ है मगर कहीं तेरा पता नहीं

अकरम नक़्क़ाश

कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में

अकरम नक़्क़ाश

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

अकरम नक़्क़ाश

यूँ ही रक्खोगे इम्तिहाँ में क्या

अकरम महमूद

उम्र-ए-गुरेज़ाँ के नाम

अख़्तर-उल-ईमान

मुफ़ाहमत

अख़्तर-उल-ईमान

मेरा दोस्त अबुल-हौल

अख़्तर-उल-ईमान

कार-नामा

अख़्तर-उल-ईमान

अपाहिज गाड़ी का आदमी

अख़्तर-उल-ईमान

फिर वही शब के सराबों का चलन!

अख़्तर ज़ियाई

सितारा ले गया है मेरा आसमान से कौन

अख्तर शुमार

पड़े थे हम भी जहाँ रौशनी में बिखरे हुए

अख्तर शुमार

ओ देस से आने वाले बता

अख़्तर शीरानी

जहाँ 'रेहाना' रहती थी

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

आँसू

अख़्तर शीरानी

ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए

अख़्तर शीरानी

मैं आरज़ू-ए-जाँ लिखूँ या जान-ए-आरज़ू!

अख़्तर शीरानी

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