जान Poetry (page 59)

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना

अकबर इलाहाबादी

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए

अकबर इलाहाबादी

इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए

अकबर इलाहाबादी

बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए

अकबर इलाहाबादी

अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए

अकबर इलाहाबादी

अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके

अकबर इलाहाबादी

आज आराइ-ए-शगेसू-ए-दोता होती है

अकबर इलाहाबादी

मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है

अजमल सिराज

मैं ने ऐ दिल तुझे सीने से लगाया हुआ है

अजमल सिराज

जिस दिन से गया वो जान-ए-ग़ज़ल हर मिसरे की सूरत बिगड़ी

अजमल सिद्दीक़ी

ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ

अजमल सिद्दीक़ी

इतराता गरेबाँ पर था बहुत, रह-ए-इश्क़ में कब का चाक हुआ

अजमल सिद्दीक़ी

अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं

अजमल सिद्दीक़ी

ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम

अजमल अजमली

हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास

आजिज़ मातवी

जब भी मिलते हैं तो जीने की दुआ देते हैं

अजय सहाब

बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की

ऐतबार साजिद

ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया

ऐतबार साजिद

तर्क-ए-तअल्लुक़ कर तो चुके हैं इक इम्कान अभी बाक़ी है

ऐतबार साजिद

कैसे कहीं कि जान से प्यारा नहीं रहा

ऐतबार साजिद

धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा

ऐतबार साजिद

फिरा किसी का इलाही किसी से यार न हो

ऐश देहलवी

कुछ कम नहीं हैं शम्अ से दिल की लगन में हम

ऐश देहलवी

तुम्हारे बिन अब के जान-ए-जाँ मैं ने ईद करने की ठान ली है

ऐनुद्दीन आज़िम

सुर्ख़-रू सब को सर-ए-मक़्तल नज़र आने लगे

ऐनुद्दीन आज़िम

मेरे हमराह सितारे कभी जुगनू निकले

ऐनुद्दीन आज़िम

अदम से परे

ऐन ताबिश

यहाँ के रंग बड़े दिल-पज़ीर हुए हैं

ऐन ताबिश

बज़्म ख़ाली नहीं मेहमान निकल आते हैं

ऐन ताबिश

मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए

अहसन मारहरवी

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