चलो चलें Poetry (page 3)

किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर

हफ़ीज़ जालंधरी

हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा

हफ़ीज़ जालंधरी

गर उस का सिलसिला भी उम्र-ए-जावेदाँ से मिले

हफ़ीज़ होशियारपुरी

अब कोई आरज़ू नहीं शौक़-ए-पयाम के सिवा

हफ़ीज़ होशियारपुरी

शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं

हबीब जालिब

अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उस सितमगर की मेहरबानी से

गुलज़ार देहलवी

तख़्लीक़

गुलज़ार

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

वही मैं हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं

फ़रीद परबती

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

फ़नकार और मौत

फ़रीद इशरती

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता

फ़ानी बदायुनी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

निगाह-ए-बाग़बाँ कुछ मेहरबाँ मा'लूम होती है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से अहल-ए-जहाँ मफ़र नहीं

दर्शन सिंह

कब ख़मोशी को मोहब्बत की ज़बाँ समझा था मैं

दर्शन सिंह

दौलत मिली जहान की नाम-ओ-निशाँ मिले

दर्शन सिंह

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम

दाग़ देहलवी

लोग जिन को आज तक बार-ए-गराँ समझा किए

डी. राज कँवल

किसी ने बा-वफ़ा समझा किसी ने बेवफ़ा समझा

डी. राज कँवल

खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है

डी. राज कँवल

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