जबीं Poetry (page 4)

तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है

शकील बदायुनी

शिकवे तिरे हुज़ूर किए जा रहा हूँ मैं

शकील बदायुनी

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है

शकेब जलाली

मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया

शकेब जलाली

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

शहज़ाद अहमद

उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी

शहज़ाद अहमद

वापसी

शहरयार

अगली रुत की नमाज़

शहनाज़ नबी

ग़म मुझ से किसी तौर समेटा नहीं जाता

शहनाज़ मुज़म्मिल

मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर

शहनवाज़ ज़ैदी

है शर्त क़ीमत-ए-हुनर भी अब तो रब्त-ए-ख़ास पर

शाहिदा तबस्सुम

ये हम कौन हैं

शाहीन मुफ़्ती

ख़ाक-ए-दिल कहकशाँ से मिलती है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

ख़ाक-ज़ादा हूँ मगर ता-ब फ़लक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

शब जो रुख़-ए-पुर-ख़ाल से वो बुर्के को उतारे सोते हैं

शाह नसीर

सदा है इस आह-ओ-चश्म-ए-तर से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ

शाह नसीर

कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा

शाह नसीर

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

बे-सबब हाथ कटारी को लगाना क्या था

शाह नसीर

वफ़ा के दाग़ को दिल से मिटा नहीं सकता

शाग़िल क़ादरी

कब से इस दुनिया को सरगर्म-ए-सफ़र पाता हूँ मैं

शफ़ीक़ जौनपुरी

हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था

शबाना यूसुफ़

जब सबक़ दे उन्हें आईना ख़ुद-आराई का

सेहर इश्क़ाबादी

जो अपने घर को का'बा मानते हैं

सीमाब ज़फ़र

ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना

सीमाब अकबराबादी

ये किस ने शाख़-ए-गुल ला कर क़रीब-ए-आशियाँ रख दी

सीमाब अकबराबादी

नाहक़ शिकायत-ए-ग़म-ए-दुनिया करे कोई

सीमाब अकबराबादी

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