जबीं Poetry (page 2)

किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ख़ौफ़ नामा

वहीद अहमद

कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले

उनवान चिश्ती

बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं

उनवान चिश्ती

कल जहाँ दीवार ही दीवार थी

तौक़ीर तक़ी

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

चढ़ता सूरज उड़ता बादल बहता दरिया कुछ भी नहीं

तनवीर गौहर

किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में

ताज सईद

कुछ ज़रूरत से कम किया गया है

तहज़ीब हाफ़ी

पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए

ताबिश देहलवी

वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

आरज़ू है मैं रखूँ तेरे क़दम पर गर जबीं

ताबाँ अब्दुल हई

जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें

तअशशुक़ लखनवी

ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

झील आँखें थीं गुलाबों सी जबीं रखता था

सय्यद सग़ीर सफ़ी

हाए वो मुस्कुराए जाते हैं

सय्यद प्रवेज़

ज़रा न हम पे किया ए'तिबार गुज़री है

सय्यद हामिद

ख़ाकसारों से क़रीं रहता है

सय्यद अमीन अशरफ़

आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए

सय्यद आबिद अली आबिद

झूट रौशन है कि सच्चाई नहीं जानते हैं

सुल्तान अख़्तर

उठिए तो कहाँ जाइए जो कुछ है यहीं है

सुहा मुजद्ददी

दीद का इसरार मूसा लन-तरानी कोह-ए-तूर

सुग़रा आलम

तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे

सूफ़ी तबस्सुम

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