पर Poetry (page 5)

असीर-ए-शाम हैं ढलते दिखाई देते हैं

साबिर वसीम

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

रात दिन महबूस अपने ज़ाहिरी पैकर में हूँ

रियाज़ मजीद

ज़ियादा पास मत आना

रहमान फ़ारिस

क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की

रहबर जौनपूरी

और कितने अभी सितम होंगे

रज़ी रज़ीउद्दीन

इश्क़ की बीमारी है जिन को दिल ही दिल में गलते हैं

रज़ा अज़ीमाबादी

ख़िलाफ़ सारी लकीरें थीं हाथ मलते क्या

राशिद अनवर राशिद

सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है

रशीद क़ैसरानी

क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आइना सामने रखोगे तो याद आऊँगा

राजेन्द्र नाथ रहबर

ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा

रईस सिद्दीक़ी

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

साथ ले कर अपनी बर्बादी के अफ़्साने गए

राही शहाबी

अश्क आँखों में और दिल में आहों के शरर देखे

राही शहाबी

वो निगाहों को जब बदलते हैं

इक़बाल सफ़ी पूरी

गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो

इक़बाल अासिफ़

तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था

इक़बाल अशहर

मोहब्बत

इंजिला हमेश

वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था

इम्तियाज़ साग़र

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

ग़ैर-निसाबी तारीख़

इलियास बाबर आवान

न-जाने कौन तिरे काख़-ओ-कू में आएगा

इलियास बाबर आवान

चक-फेरी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा

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