पर Poetry (page 1)

किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना

महमूद शाम

हिजरत

नादिया अंबर लोधी

इश्क़ को आँख में जलते देखा

नजमा शाहीन खोसा

तख़्लीक़

फ़ैसल हाश्मी

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

हम बाद-ए-सबा ले के जब घर से निकलते थे

ज़ुबैर रिज़वी

सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

ज़िया जालंधरी

एक लड़की ने आईना देखा

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

हवा-ए-हिज्र चली दिल की रेगज़ारों में

ज़हीर काश्मीरी

अब मिरी याद को दामन की हवाएँ देना

ज़हीर काश्मीरी

इन दिनों मैं ग़ुर्बतों की शाम के मंज़र में हूँ

ज़फ़र कलीम

खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे

ज़फ़र इक़बाल

हम रिवायत के साँचे में ढलते भी हैं

युसूफ़ जमाल

अभी गुज़रे दिनों की कुछ सदाएँ शोर करती हैं

यासमीन हबीब

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

भूरी मिट्टी की तह को हटाएँ

वज़ीर आग़ा

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है

वसीम बरेलवी

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

मौसम-ए-गुल में हैं दीवानों के बाज़ार कई

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा

वली मोहम्मद वली

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