पर Poetry (page 3)

आटा

शौकत थानवी

शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें

शमीम अब्बास

तिरे बग़ैर अजब बज़्म-ए-दिल का आलम है

शकील बदायुनी

जाम गर्दिश में है दर-बंद हैं मय-ख़ानों के

शकील बदायुनी

जादा-ए-इश्क़ में गिर गिर के सँभलते रहना

शकील बदायुनी

रात के पिछले पहर

शकेब जलाली

रौशन हैं दिल के दाग़ न आँखों के शब-चराग़

शकेब जलाली

हवा-ए-शब से न बुझते हैं और न जलते हैं

शकेब जलाली

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

शकेब जलाली

शम्अ जलते ही यहाँ हश्र का मंज़र होगा

शहज़ाद अहमद

न सही जिस्म मगर ख़ाक तो उड़ती फिरती

शहज़ाद अहमद

कितनी बे-नूर थी दिन भर नज़र-ए-परवाना

शहज़ाद अहमद

घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू

शहज़ाद अहमद

ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए

शहनाज़ नूर

वो सामने हों मिरे और नज़र झुकी न रहे

शहनाज़ मुज़म्मिल

कभी क़लम कभी नेज़ों पे सर उछलते हैं

शाहजहाँ बानो याद

रात भी बाक़ी है सहबा भी शीशा भी पैमाना भी

शाहिद इश्क़ी

इक न आने वाले का इंतिज़ार करते हैं

शाहिद इश्क़ी

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

शाहिद फ़रीद

सदा-ए-मुज़्दा-ए-ला-तक़नतू के धारे पर

शहबाज़ ख़्वाजा

शहर-ए-अना में

शहाब जाफ़री

सर-ए-बज़्म मेरी नज़र से जब वो निगाह-ए-होश-रुबा मिली

शादाँ इंदौरी

जुदा हो कर वो हम से है जुदा क्या

शायर लखनवी

समझ में ख़ाक ये जादूगरी नहीं आती

शानुल हक़ हक़्क़ी

सफ़र में गर्द छटी रास्ता दिखाई दिया

सीमान नवेद

गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार

सऊद उस्मानी

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

इंटरनेट-स्थान की मलिका

सरवत ज़ेहरा

हम अपने जलते हुए घर को कैसे रो लेते

सरफ़राज़ दानिश

सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था

सरफ़राज़ दानिश

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