कभी क़लम कभी नेज़ों पे सर उछलते हैं

कभी क़लम कभी नेज़ों पे सर उछलते हैं

अब इस फ़सील से सूरज कहाँ निकलते हैं

घरों से बे-सबब अपने कहाँ निकलते हैं

ज़रूरतों के इशारों पे लोग चलते हैं

अँधेरा उन के घरों का बहुत भयानक है

तमाम शहर में जिन के चराग़ जलते हैं

हवा के झोंके हैं तेरे पयाम्बर लेकिन

हवा के झोंके ही चेहरों पे ख़ाक मलते हैं

बदल भी जाए अगर वो तो हम न बदलेंगे

नज़र के साथ नज़ारे कहाँ बदलते हैं

वहाँ के सर-फिरे दरियाओं का ख़ुदा-हाफ़िज़

पहाड़ आग बहुत कम जहाँ उगलते हैं

उसी के नग़्मों से झूमेगी काएनात ऐ 'याद'

वो जिस के सामने आहन-सिफ़त पिघलते हैं

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In Hindi By Famous Poet Shahjahan Bano Yaad. is written by Shahjahan Bano Yaad. Complete Poem in Hindi by Shahjahan Bano Yaad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.