पर Poetry (page 4)

सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासबा

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं और मैं!

साक़ी फ़ारुक़ी

यूँ मिरे पास से हो कर न गुज़र जाना था

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

जिस से सारे चराग़ जलते थे

सलमान अख़्तर

कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था

सलमान अख़्तर

दर्द जब शाएरी में ढलते हैं

सलमान अख़्तर

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से

सलीम कौसर

क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन

सलीम कौसर

इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता

सलीम कौसर

आख़िरी पड़ाव

सलीम फ़िगार

कुछ नए ख़्वाब हर इक फ़स्ल में पाले गए हैं

सलीम फ़राज़

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

चैत

सलाहुद्दीन परवेज़

कभी कभी

सज्जाद ज़हीर

नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का

साजिद हमीद

दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

एक तस्वीर-ए-रंग

साहिर लुधियानवी

धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं

साहिर लुधियानवी

दर्द की सूरत में वो उम्दा सा तोहफ़ा दे गया

सहर महमूद

तारीकियों का हिसाब

सहर अंसारी

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

साग़र ख़य्यामी

दिए कितने अँधेरी उम्र के रस्तों में आते हैं

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे

सईद अख़्तर

चिता में बैठी ख़्वाहिश

सईद अहमद

उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में

सदा अम्बालवी

चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

सदा अम्बालवी

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