पर Poetry (page 8)

सज़ा

बाक़र मेहदी

शायद

बलराज कोमल

दीदा-ए-तर

बलराज कोमल

चाल अपनी अदा से चलते हैं

बकुल देव

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

ज़फ़र

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

अज़रक़ अदीम

एक नज़्म लिखना मुश्किल है

अज़रा अब्बास

रौशनी ढूँड के लाना कोई मुश्किल तो न था

अज़्म बहज़ाद

मैं ने कल ख़्वाब में आइंदा को चलते देखा

अज़्म बहज़ाद

मेरी आहट

अज़ीज़ तमन्नाई

एक-आध हरीफ़-ए-ग़म-ए-दुनिया भी नहीं था

अज़ीज़ हामिद मदनी

ऐ शहर-ए-ख़िरद की ताज़ा हवा वहशत का कोई इनआम चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए

अज़हर नवाज़

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना

अज़हर इनायती

जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर

आज़ाद गुलाटी

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज

आज़ाद गुलाटी

निहत्ते आदमी पे बढ़ के ख़ंजर तान लेती है

औरंगज़ेब

ज़रा से रिज़्क़ में बरकत भी कितनी होती थी

अतीक़ुल्लाह

तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ

अतीक़ुल्लाह

बहुत दिनों में कहीं रास्ते बदलते थे

अतीक़ुल्लाह

फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे

अतीक़ अंज़र

आज भी जिस की ख़ुश्बू से है मतवाली मतवाली रात

अताउर्रहमान जमील

तीरगी शम्अ बनी राहगुज़र में आई

अता आबिदी

ऐसी नई कुछ बात न होगी

असरारुल हक़ असरार

आग जो दिल में लगी है वो बुझा दी जाए

असरा रिज़वी

ज़लज़ले का ख़ौफ़ तारी है दर-ओ-दीवार पर

असलम कोलसरी

हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं

असलम कोलसरी

भीगे शेर उगलते जीवन बीत गया

असलम कोलसरी

लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं

अशफ़ाक़ आमिर

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