चलो Poetry (page 14)
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा
बेख़ुद देहलवी
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
बेखुद बदायुनी
नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
बेकल उत्साही
उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं
बहज़ाद लखनवी
तिरे इश्क़ में ज़िंदगानी लुटा दी
बहज़ाद लखनवी
ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक
बेदम शाह वारसी
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
बेदम शाह वारसी
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
बेदम शाह वारसी
हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे
बेदम शाह वारसी
दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा
बेदम शाह वारसी
ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा
बयान मेरठी
वारफ़्तगी-ए-इश्क़ न जाए तो क्या करें
बासित भोपाली
नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले
बासित भोपाली
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
बशीर बद्र
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की
बहराम जी
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
ज़फ़र
वतन
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा
अज़ीज़ वारसी
हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप को सँवारा है
अज़ीज़ तमन्नाई
यूँही कटे न रहगुज़र-ए-मुख़्तसर कहीं
अज़ीज़ तमन्नाई
उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में
अज़ीज़ तमन्नाई
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
अज़ीज़ लखनवी
हुस्न-ए-आलम-सोज़ ना-महदूद होना चाहिए
अज़ीज़ लखनवी
एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं
अज़ीज़ लखनवी
ये इक शान-ए-ख़ुदा है मैं नहीं हूँ
आज़ाद अंसारी
चार-सू आलम-ए-इम्काँ में अँधेरा देखा
औज लखनवी
इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नूरा
असरार-उल-हक़ मजाज़
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