चलो Poetry (page 17)

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे

अली अख़्तर अख़्तर

वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे

अलीम अख़्तर

कोई हुनर तो मिरी चश्म-ए-अश्क-बार में है

अकरम महमूद

डासना स्टेशन का मुसाफ़िर

अख़्तर-उल-ईमान

वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं

अख़्तर ज़ियाई

उन को बुलाएँ और वो न आएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

अख़्तर शीरानी

कभी ज़बाँ पे न आया कि आरज़ू क्या है

अख़्तर सईद ख़ान

न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें

अख़्तर ओरेनवी

दारू-ए-होश-रुबा नर्गिस-ए-बीमार तो हो

अख़्तर ओरेनवी

शाइरो हद्द-ए-क़दामत से निकल कर देखो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

वही है गर्दिश-ए-दौराँ वही लैल-ओ-नहार अब भी

अख़लाक़ बन्दवी

फ़ौजियों के सर तो दुश्मन के सिपाही ले गए

अख़लाक़ बन्दवी

ये ग़ाज़ा है काजल है उबटन है क्या है

अख़लाक़ अहमद आहन

पहले तो शहर ऐसा न था

ऐन ताबिश

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी

अहमद मुश्ताक़

जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया

अहमद ख़याल

चाक करते हैं गरेबाँ इस फ़रावानी से हम

अहमद जावेद

फ़ीरोज़ी तस्बीह का घेरा हाथ में जल्वा-अफ़्गन था

अहमद जहाँगीर

मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस

अहमद हुसैन माइल

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

अहमद हुसैन माइल

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

अहमद फ़राज़

क़र्या-ए-इंतिज़ार में उम्र गँवा के आए हैं

अहमद अज़ीम

कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

एहसास का वसीला-ए-इज़हार है ग़ज़ल

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना

आग़ा हज्जू शरफ़

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