चलो Poetry (page 13)

''ला'' भी है एक गुमाँ

फ़हीम शनास काज़मी

सरहद-ए-जल्वा से जो आगे निकल जाएगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

सलीक़ा इतना तो ऐ शौक़-ए-ख़ुश-कलाम आए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

एजाज़ वारसी

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे

एहसान दानिश

उम्मीद पर हमारी ये दुनिया खरी नहीं

डॉक्टर आज़म

हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने

दिवाकर राही

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

ऐ इश्क़ तू ने वाक़िफ़-ए-मंज़िल बना दिया

दिल शाहजहाँपुरी

इंसाँ ब-यक निगाह बुरा भी भला भी है

द्वारका दास शोला

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

हुस्न-ए-अज़ल का जल्वा हमारी नज़र में है

दत्तात्रिया कैफ़ी

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने

दर्शन सिंह

तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता

दानियाल तरीर

इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा

दाग़ देहलवी

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है

चरख़ चिन्योटी

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं

चकबस्त ब्रिज नारायण

सवाद-ए-शाम से डरता हुआ नज़र आया

बुशरा ज़ैदी

ज़ौ-बार इसी सम्त हुए शम्स-ओ-क़मर भी

ब्रहमा नन्द जलीस

किसी तरह भी किसी से न दिल लगाना था

बिस्मिल इलाहाबादी

आरज़ूएँ नज़्र-ए-दौराँ नज़्र-ए-जानाँ हो गईं

बिर्ज लाल रअना

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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