चलो Poetry (page 8)

रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर

रियाज़ ख़ैराबादी

पाया जो तुझे तो खो गए हम

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

लोग उट्ठे हैं तिरी बज़्म से क्या क्या हो कर

रिफ़अत सेठी

छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से

रियाज़ मजीद

काश पड़ते न इन अज़ाबों में

रज़ी रज़ीउद्दीन

घर की रौनक़

रज़ा नक़वी वाही

ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात

रज़ा अज़ीमाबादी

साक़ी-ए-रंगीं-अदा था बादा-ए-गुलफ़ाम था

रशीद शाहजहाँपुरी

साक़ी-ए-रंगीं-अदा था बादा-ए-गुलफ़ाम था

रशीद शाहजहाँपुरी

कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता

राशिद क़य्यूम अनसर

गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में

रशीद लखनवी

किसे है लौह-ए-वक़्त पर दवाम सोचते रहे

रशीद कामिल

तुम्हारा क़ुर्ब वजह-ए-इज़्तिराब-ए-दिल न बन जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

मसअला ये भी ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ आसाँ हो गया

राम कृष्ण मुज़्तर

वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है

राज कुमार सूरी नदीम

'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद

राज कुमार सूरी नदीम

जब फ़राज़-ए-बाम पर वो जल्वा-गर होता नहीं

राज कुमार सूरी नदीम

जिस दर पे तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा न रहेगा

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

तल्ख़-ओ-तुर्श

राही मासूम रज़ा

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया

इक़बाल सुहैल

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

हज़रत-ए-इश्क़ इधर कीजे करम या माबूद

इंशा अल्लाह ख़ान

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

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