जाम Poetry (page 34)

सरशार हूँ साक़ी की आँखों के तसव्वुर से

आसी रामनगरी

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है

आसी रामनगरी

वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद

आसी ग़ाज़ीपुरी

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

आनिस मुईन

मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो

आल-ए-अहमद सूरूर

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने

आल-ए-अहमद सूरूर

हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया

आल-ए-अहमद सूरूर

मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का

आग़ा अकबराबादी

दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और

आग़ा अकबराबादी

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