जाम Poetry (page 2)

मुझ पर सुरूर छा गया बादा-ए-दिल-नवाज़ से

ज़हीर अहमद ताज

जज़्बा-ए-बे-कराना

ज़ाहिदा ज़ैदी

तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे

ज़ाहिदा ज़ैदी

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

उम्र-ए-अबद का मा-हसल इश्क़ का दौर-ए-ना-तमाम

ज़फ़र ताबाँ

उम्र-ए-अबद का मा-हसल इश्क़ का दौर-ए-ना-तमाम

ज़फ़र ताबाँ

दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा

ज़फ़र गौरी

बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है

यूनुस ग़ाज़ी

मज़ाक़-ए-काविश-ए-पिन्हाँ अब इतना आम क्या होगा

याक़ूब उस्मानी

करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा

याक़ूब उस्मानी

वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया

यगाना चंगेज़ी

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था

यगाना चंगेज़ी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

इश्क़ का इख़्तिताम करते हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

नसीम-ए-सुब्ह यूँ ले कर तिरा पैग़ाम आती है

वासिफ़ देहलवी

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

नसीम-ए-सुब्ह यूँ ले कर तिरा पैग़ाम आती है

वासिफ़ देहलवी

क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

वसीम ख़ैराबादी

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

यही बज़्म-ए-ऐश होगी यही दौर-ए-जाम होगा

वसीम बरेलवी

उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है

वसीम बरेलवी

दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो

वसीम बरेलवी

इक अधूरी सी शाम बाक़ी है

वसीम अकरम

लहू लहू सा दिल-ए-दाग़-दार ले के चले

वाक़िफ़ राय बरेलवी

लबों पे शिकवा-ए-अय्याम भी नहीं होता

वक़ार सहर

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