चलो चलें Poetry (page 7)

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है

वली मोहम्मद वली

अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

मावरा

वहीद अख़्तर

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

उन को रोज़ इक ताज़ा हीला एक ख़ंजर चाहिए

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

ख़ौफ़ नामा

वहीद अहमद

हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे

विजय शर्मा अर्श

तुम

वर्षा गोरछिया

आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे

वारिस किरमानी

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