युद्ध Poetry (page 4)

बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

ये इश्क़ भी अजीब है इक आन हो गया

शफ़क़ सुपुरी

रस्म ही शहर-ए-तमन्ना से वफ़ा की उठ जाए

सय्यद एहतिशाम हुसैन

अजब ही हाल था आवाज़ का तो

सावन शुक्ला

सर-कशी को जब हम ने हम-रिकाब रखना है

सरवर अरमान

भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा

सरवत हुसैन

एक वजूदी दोस्त के नाम

सरमद सहबाई

मेरा शुमार कर ले अदद के बग़ैर भी

सरदार अयाग़

पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू

साक़ी फ़ारुक़ी

बाकिरा

साक़ी फ़ारुक़ी

बद-गुमानी

साक़ी फ़ारुक़ी

ये ज़ुल्म है ख़याल से ओझल न कर उसे

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था

साक़ी फ़ारुक़ी

बुझी बुझी हुई आँखों में गोशवारा-ए-ख़्वाब

सालिम सलीम

कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया

सलीम सिद्दीक़ी

रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा

सलीम शहज़ाद

सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया

सलीम कौसर

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

सलीम कौसर

दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा

सलीम कौसर

अब फ़ैसला करने की इजाज़त दी जाए

सलीम कौसर

मशरिक़ हार गया

सलीम अहमद

पीतल का साँप

सलाम मछली शहरी

धरती अमर है

सलाम मछली शहरी

अब के क़िमार-ए-इश्क़ भी ठहरा एक हुनर दानाई का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

मिरे गीत

साहिर लुधियानवी

मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

साहिर लुधियानवी

लहु नज़्र दे रही है हयात

साहिर लुधियानवी

किसी को उदास देख कर

साहिर लुधियानवी

ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है

साहिर लुधियानवी

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