युद्ध Poetry (page 2)

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

हम-दिगर मोमिन को है हर बज़्म में तकफ़ीर-ए-जंग

वलीउल्लाह मुहिब

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

ज़िंदगी दस्त-ए-तह-ए-संग रही है बरसों

वकील अख़्तर

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

ख़ुद-रौ दलीलें

वहीद अहमद

करना है कार-ए-ख़ैर तो फिर सर न देखना

विश्मा ख़ान विश्मा

फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए

विपुल कुमार

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

तौसीफ ताबिश

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली

तसनीम फ़ारूक़ी

तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का

तनवीर अंजुम

लब तक आया गिला हमेशा से

ताजदार आदिल

ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो

तैमूर हसन

ये जंग जीत है किस की ये हार किस की है

तैमूर हसन

वो कम-सुख़न न था पर बात सोच कर करता

तैमूर हसन

वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है

तैमूर हसन

मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगा

तैमूर हसन

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

लहरों में भँवर निकलेंगे मेहवर न मिलेगा

तफ़ज़ील अहमद

अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे

ताबिश कमाल

मैं कर्ब-ए-बुत-तराशी-ए-आज़र में क़ैद था

सय्यद शकील दस्नवी

तर्ज़-ए-नौ की शाएरी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ग़म-हा-ए-रोज़गार से फ़ुर्सत नहीं मुझे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

मंसब-ए-इश्क़ से कुछ ओहदा-बरा मैं ही हुआ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

हर लम्हा ज़िंदगी के पसीने से तंग हूँ

सूर्यभानु गुप्त

अब तो दिल ओ दिमाग़ में कोई ख़याल भी नहीं

सुनील कुमार जश्न

तिलिस्म-ख़ाना-ए-दिल में है चार-सू रौशन

सुल्तान अख़्तर

दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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