ज़िंदगी जंग है आसाब की और ये भी सुनो
इश्क़ आसाब को मज़बूत बना देता है
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सफ़र में होती है पहचान कौन कैसा है
तुम कोई इस से तवक़्क़ो' न लगाना मरे दोस्त
नहीं उड़ाऊँगा ख़ाक रोया नहीं करूँगा
बहार आने की उम्मीद के ख़ुमार में था
एक मंज़िल है एक जादा है
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं
वो कम-सुख़न न था पर बात सोच कर करता
मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगा
ज़िंदगी भर की रियाज़त मिरी बे-कार गई