ज़िंदगी भर की रियाज़त मिरी बे-कार गई
इक ख़याल आया था बदले में वो क्या देता है
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बहार आने की उम्मीद के ख़ुमार में था
मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ
हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
तुम कोई इस से तवक़्क़ो' न लगाना मरे दोस्त
मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
एक मंज़िल है एक जादा है
वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
मिरा बातिन मुझे हर पल नई दुनिया दिखाता है
मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा
बहाऊँगा न मैं आँसू न मुस्कराउँगा
उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे