जिन्न Poetry (page 5)

जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया

वली उज़लत

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

वली उज़लत

आज दिल बे-क़रार है मेरा

वली उज़लत

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे

वली मोहम्मद वली

गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

इक मोहब्बत का फ़ुसूँ था सो अभी बाक़ी है

वजीह सानी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता

वहीद अख़्तर

अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ

विश्वनाथ दर्द

सब के आगे नहीं बिखरना है

विकास शर्मा राज़

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

आख़िर वो इज़्तिराब के दिन भी गुज़र गए

वारिस किरमानी

कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले

उनवान चिश्ती

हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे

उम्मीद फ़ाज़ली

आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली है

उम्मीद फ़ाज़ली

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं

तिलोकचंद महरूम

दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी

तिलोकचंद महरूम

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

तिलोकचंद महरूम

मेरी सूरत साया-ए-दीवार-ओ-दर में कौन है

तौसीफ़ तबस्सुम

इक तीर नहीं क्या तिरी मिज़्गाँ की सफ़ों में

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल किस की तेग़-ए-नाज़ से लज़्ज़त-चशीदा है

मीर तस्कीन देहलवी

बे-मेहर कहते हो उसे जो बेवफ़ा नहीं

मीर तस्कीन देहलवी

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