जोश Poetry (page 4)

जुनूँ के जोश में जिस ने मोहब्बत को हुनर जाना

साहिर देहल्वी

गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था

साहिर देहल्वी

उस्ताद मर गए

साग़र ख़य्यामी

तराना-ए-क़ौमी

सफ़ीर काकोरवी

चारों ओर अब फूल ही फूल हैं क्या गिनते हो दाग़ों को

सफ़दर मीर

पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी

साबिर ज़फ़र

क्यूँ ढूँढती रहती हूँ उसे सारे जहाँ में

सबा नुसरत

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना

रियाज़ ख़ैराबादी

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

यार आया है अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार दिखाओ

रिन्द लखनवी

दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले

रज़ा अमरोही

दौर-ए-सबूही शोला-ए-मीना रक़्साँ छाँव में तारों की

रविश सिद्दीक़ी

ये कौन सा मक़ाम है ऐ जोश-ए-बे-ख़ुदी

रतन पंडोरवी

जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते

रतन पंडोरवी

ये उम्र गुज़री है इतने सितम उठाने में

राशिद तराज़

नज़र कर तेज़ है तक़दीर मिट्टी की कि पत्थर की

रशीद लखनवी

जुनूँ की फ़स्ल आई बढ़ गई तौक़ीर पत्थर की

रशीद लखनवी

अगर गुल की कोई पती झड़ी है

रशीद लखनवी

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

दर्द सारे शब-ए-ख़ामोश में गिर जाते हैं

रजनीश सचन

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया

इक़बाल सुहैल

मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे

इक़बाल साजिद

नज़र जिन की उलझ जाती है उन की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

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