जोश Poetry (page 7)

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है

गौहर होशियारपुरी

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं

फ़रीद परबती

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

अब उन्हें अपनी अदाओं से हिजाब आता है

फ़ानी बदायुनी

ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता

फ़ना बुलंदशहरी

कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शहर-ए-याराँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद

एहतराम इस्लाम

तौक़ीर अँधेरों की बढ़ा दी गई शायद

एहतराम इस्लाम

शौक़ बाक़ी नहीं बाक़ी नहीं अब जोश-ओ-ख़रोश

डॉक्टर आज़म

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